लगा जो धक्का,
टूट गया दिल कैसे खुद को समझाऊं रे
वो नहीं मेरी, अब किसी और की,
कैसे खुद को बतलाऊँ रे?
चाहा था जिसको खुद से ज्यादा,
उसकी चाहत कुछ और है अब
पर इतना पता है चाहत को खुद के,
चाह कर भी भूल न पाऊं मैं !
वो आदत न केवल,
थी चाहत भी मेरी, आदत तो भूल भी जाऊँ मैं,
किन्तु कोई बस यह बतला दे,
चाहत कैसे बिसराऊँ मैं?
वो नहीं है मेरी, बेशक पता है।
वो ले गया उसको, नज़र से मेरे
अंजान बना बैठा था तब,
बेचैन हुआ जब नज़र खुली तो,
ढूंढा उसको पर मिली नहीं वो।
निकल चुकी थी दूर बहुत वो,
जाना उस तक आसान न था,
ग़र जाना होता तो चला भी जाता,
पर लाना उसको आसान न था।
दुनिया से अंजान बेखबर
सुखमय सा था सफर वो उसका।
लक़ीर में मेरी वही लिखी थी,
ऐसा मुझको लगता था तब,
निकल पड़ी वो दूर थी अपितु,
जो कभी बनी थी मेरी बंधू।
खैर,
जो बीत गयी वो बात गयी,
जीवन में एक सितारा था,
माना वो बेहद प्यारा था! (2x)
21/09/2018
7:25 AM
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