Wednesday, 19 September 2018

Father's Day-2018

पॉकेट मनी से कुछ पैसे तो बचा ही लेता हूँ, बचपन से बचाने की आदत जो है। सोचता हूँ थोड़ा घुम-फिर लिया जाये, मौज-मस्ती की जाये।
दिल्ली की सड़के, ये जवानी, ये आवारापन, ये वक़्त दुबारा थोरे ही न आएगा।

मगर गला रुंध जाता है, आँखें ढब-ढबा सी जाती है, जब वो कहते हैं, "बेटा मन लगा कर पढ़ना, जितने पैसो की जरुरत है निकाल लिया करो मगर खाने में कोई कमी मत करना, "हेल्थ इस वेल्थ" 

नि:शब्द हो उठता हूँ उस वक़्त, बिलकुल निःशब्द!
जी पापा. . .जी पापा करते हुए जैसे-तैसे फ़ोन रख पाता हूँ।

लेकिन ये कहते वक़्त वो भूल जाते हैं की,
जरूरतें सबकी होती है। उनकी भी है। ऐसे में जब हम बच्चों की फरमाहिशें हो तो खर्चे पगार से अधिक जा पहुँचती है। ख़ैर, हमारी बेतुकी सी फरमाहिशें तो तब भी पूरी होती है लेकिन इसी शर्त पे की बच्चों के ज़िद के आगे उन्हें अपनी ज़रूरतें कुछ फिज़ूल सी लगने लगती है।


खुद के पुराने शर्ट भी उन्हें अच्छे लगने लगते हैं क्योंकि बच्चों को नयी शर्ट दिलानी होती है! Nokia C5 के ख़राब की-पैड पे उनकी उँगलियाँ इसीलिए दौड़ती है क्योंकि हमारी महंगे फ़ोन की फरमाहिश होती है! स्वास्थ उनका बिगड़ा होता है लेकिन फल वो हमारे लिए लेकर आते हैं! मेहनत वो करते हैं और पैसे हम पे लुटाते हैं!
 
ऊपर से कठोर किन्तु अन्दर से बिल्कुल नरम। जिन्हें किसी से कुछ भी लेने में कम, और देने में ज्यादा यकीन है।

जिनके गुस्से में भी प्यार छुपा होता है, हमारी फ़िक्र छुपी होती है। कुछ ऐसे हैं मेरे पापा। 

कहाँ से लाते हैं वो इतना सारा प्यार?  मुझे नहीं पता! और शायद ही मैं कभी जान पाऊं।


मुझे तो सिर्फ इतना पता है की उन्होंने हमे निस्वार्थ भाव प्रेम किया, निस्वार्थ भाव से प्रेम करना सिखाया! अच्छे संस्कार दिए और अपने मूल्यों एवं सिद्धांतो पर कायम रहना सिखाया। उन्होंने ही मेरी चोरी पकड़ी और उन्होंने ही मेरा झूठ भी पकड़ा तो भला उनसे बेहतर मुझे कौन समझ सकता है। आज मैं जैसा भी हूँ केवल पापा की वजह से हूँ। और भविष्य में जो कुछ भी बनूँगा वो उन्हीं के वजह से बनूँगा। उन्हीं के मार्गदर्शन में। 

#HappyFathersDayPapa
#LoveYouSoMuch 


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