Wednesday, 19 September 2018

हिंदी हैं हम

काश की मैं उसे हिंदी की अहमियत समझा पाता!

बात कुछ ही दिन की है, मैं क्लास में बैठ कर अपने मित्र को कुछ जरूरी मेसेज कर रहा था, हिंदी में। पता नहीं कौन महानुभाव था वह जिसने देखा और तंज कसते हुए बोला. . .भाई हिंदी?
किस ज़माने के हो?

ध्यान प्रतिशतता के सवालो में उलझा था उस वक़्त कुछ बोल ही नहीं पाया मैं। बड़ा खेद है मन में। वर्ना बताता उसे की जिस स्वेग से वह अंग्रेजी बोलता है उसके न जाने कितने ही शब्द हमारे संस्कृत एवं हिंदी से ही लिए गयें हैं! न जाने क्या दिक्कत है हमारे देश के लोगों की जो की अपने ही भाषा को बोलने में खुद को हिन भावनाओं का शिकार मान बैठते हैं। जबकि विदेशी भाषाओं के इस्तेमाल में उन्हें एक अलग प्रकार का स्वेग दिखता हैं। काश मैं बता पाता उस नादान को की हिंदी ही वह भाषा है जिसने 132 करोड़ लोगो को एक कर रखा है फर्क नहीं पड़ता वह किस धर्म मजहब या संप्रदाय से ताल्लुक़ात रखते हैं। गाँधी गुजराती थे किन्तु उन्होंने  करोड़ो हिंदुस्तानियों को हिंदी के माध्यम से ही बाँध रखा था, एक कर रखा था।

हिंदी हमारी राष्ट्र भाषा है क्यों भूल बैठते हैं हम?
क्यों बार-बार इस वक्तव्य पर इतना ज़ोर दे कर कहना पड़ता है हमे? 

01/02/2018

A Broken Dream

सात वर्ष बीत गए. . .कब बीते पता ही नहीं चला और काफी कुछ बदल गया इन सात वर्षों में। एक छोटा सा बच्चा जो कभी अपने देश का नेतृत्व करना चाहता था वो अब बड़ा हो गया है। कब हुआ पता ही नहीं चला। कैसे हुआ समझ ही नहीं आया। किया तो उसने बहुत कुछ मगर कर के भी कुछ कर न सका! और सात वर्ष बीत गये. . .कब बीतें पता ही नहीं चला!

14 वर्ष की उम्र और बड़ी-बड़ी बातें। खूब ऊँची सोच और खूब ऊँचे सपने। कामयाब होने की जिद और सफल होने का लक्ष्य। 

कुछ ऐसी थी उस बच्चे की ख़्वाहिश। दिली ख्वाहिश। न दिन का फिक्र न रात की चिंता। न स्कूल का टेंशन न परीक्षा का डर। कुछ था ग़र उसके पास तो वह था जूनून। केवल जूनून। खेलने का। चाहे सुबह हो या शाम, दिन हो रात। परवाह नहीं। जज्बा मंजिल पाने का जो था।

हुआ तो कुछ भी नहीं। मगर सात वर्ष बीत गए. . .और कब बीते पता भी न चला !

और इन सात वर्षो में वह छोटा सा बच्चा जिसकी छोटी-छोटी आँखों में बड़े-बड़े सपने थे वह बड़ा हो गया।

क्रिकेट जिसका धर्म था और सचिन जिसका भगवान। जो बल्ला ले के सोता था और बल्ला ले के जगता था। जो रात के 2 बजे भी बल्ले की मरम्मत और अगले मैच की रणनीति में उलझा होता था। जिसके हर एक सांस से खेल की खुशबू आती थी और नस-नस में क्रिकेट का ख़ुमार सवार था। वह बच्चा अब बड़ा हो गया है। किया तो उसने बहुत कुछ मगर कर के भी कुछ न कर सका, सात वर्ष बीत गए और पता भी न चला!

न युवराज के 6 छक्के लगते न श्रीसंत का वो कैच। न सचिन के वो 200 और न धोनी का वो विनिंग सिक्स. . .आज पुरे सात वर्ष बीत गए। आज के ही दिन जो छोटा सा बच्चा इंडिया. . .इंडिया. . .चियर्स कर रहा था. . .आँखों में जिसके सपने थे, उम्मीदें थी, ख्वाहिशें थी. . .उसका वो सपना भी अब टूट गया, उम्मीदें भी अब छूट गयी। और सात वर्ष बीत गए, पता भी न चला. . .

Raj Atul
02/04/2018

Father's Day-2018

पॉकेट मनी से कुछ पैसे तो बचा ही लेता हूँ, बचपन से बचाने की आदत जो है। सोचता हूँ थोड़ा घुम-फिर लिया जाये, मौज-मस्ती की जाये।
दिल्ली की सड़के, ये जवानी, ये आवारापन, ये वक़्त दुबारा थोरे ही न आएगा।

मगर गला रुंध जाता है, आँखें ढब-ढबा सी जाती है, जब वो कहते हैं, "बेटा मन लगा कर पढ़ना, जितने पैसो की जरुरत है निकाल लिया करो मगर खाने में कोई कमी मत करना, "हेल्थ इस वेल्थ" 

नि:शब्द हो उठता हूँ उस वक़्त, बिलकुल निःशब्द!
जी पापा. . .जी पापा करते हुए जैसे-तैसे फ़ोन रख पाता हूँ।

लेकिन ये कहते वक़्त वो भूल जाते हैं की,
जरूरतें सबकी होती है। उनकी भी है। ऐसे में जब हम बच्चों की फरमाहिशें हो तो खर्चे पगार से अधिक जा पहुँचती है। ख़ैर, हमारी बेतुकी सी फरमाहिशें तो तब भी पूरी होती है लेकिन इसी शर्त पे की बच्चों के ज़िद के आगे उन्हें अपनी ज़रूरतें कुछ फिज़ूल सी लगने लगती है।


खुद के पुराने शर्ट भी उन्हें अच्छे लगने लगते हैं क्योंकि बच्चों को नयी शर्ट दिलानी होती है! Nokia C5 के ख़राब की-पैड पे उनकी उँगलियाँ इसीलिए दौड़ती है क्योंकि हमारी महंगे फ़ोन की फरमाहिश होती है! स्वास्थ उनका बिगड़ा होता है लेकिन फल वो हमारे लिए लेकर आते हैं! मेहनत वो करते हैं और पैसे हम पे लुटाते हैं!
 
ऊपर से कठोर किन्तु अन्दर से बिल्कुल नरम। जिन्हें किसी से कुछ भी लेने में कम, और देने में ज्यादा यकीन है।

जिनके गुस्से में भी प्यार छुपा होता है, हमारी फ़िक्र छुपी होती है। कुछ ऐसे हैं मेरे पापा। 

कहाँ से लाते हैं वो इतना सारा प्यार?  मुझे नहीं पता! और शायद ही मैं कभी जान पाऊं।


मुझे तो सिर्फ इतना पता है की उन्होंने हमे निस्वार्थ भाव प्रेम किया, निस्वार्थ भाव से प्रेम करना सिखाया! अच्छे संस्कार दिए और अपने मूल्यों एवं सिद्धांतो पर कायम रहना सिखाया। उन्होंने ही मेरी चोरी पकड़ी और उन्होंने ही मेरा झूठ भी पकड़ा तो भला उनसे बेहतर मुझे कौन समझ सकता है। आज मैं जैसा भी हूँ केवल पापा की वजह से हूँ। और भविष्य में जो कुछ भी बनूँगा वो उन्हीं के वजह से बनूँगा। उन्हीं के मार्गदर्शन में। 

#HappyFathersDayPapa
#LoveYouSoMuch